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Media Samvad Editor

क्या सूचना के अधिकार की स्वतंत्रता सिर्फ एक पंचलाइन है?

सूचना के अधिकार की स्वतंत्रता: एक बिंदुवादी भ्रम या वास्तविकता?


आधुनिक लोकतंत्र की जटिलताओं को देखते हुए, एक मौलिक सिद्धांत को पारदर्शिता और जिम्मेदारी के कोने के रूप में रखा गया है: सूचना का अधिकार । देश के कानूनों और संविधान में शामिल, इस अवधारणा का उद्देश्य नागरिकों को अपने सरकारों के कार्यों, निर्णयों और नीतियों के बारे में ज्ञान तक पहुंच प्रदान करके सशक्त बनाना है। हालांकि, सतह के नीचे की सत्यता यह है कि शासन के विभागों को दिए गए यह दायित्व एक गंदे वादे के अलावा कुछ भी नहीं है |

सूचना के अधिकार की प्रभावशीलता को नुकसान पहुंचाने वाली एक बड़ी समस्या यह है कि विभिन्न क्षेत्रों में मानकीकृत परिभाषाओं और दिशानिर्देशों की कमी है। क्या "सूचना" बनाता है, अभी भी अज्ञात है, अधिकारियों द्वारा स्वाभाविक व्याख्याओं के लिए जगह छोड़ देता है और चेरी-चिकन करता है।


यह अस्थिरता, सरकारों को संवेदनशील डेटा के लिए अनुरोधों को पक्ष में रखने की अनुमति देती है, राष्ट्रीय सुरक्षा, वाणिज्यिक गोपनीयता, या यहां तक कि "सार्वजनिक हित" के बारे में अस्थिर अवधारणाओं को संदर्भित करती है। मूल रूप से, ये छूट एक सेट-ऑफ-जेल-मुक्त कार्ड बन जाते हैं, जिससे अधिकारियों को बिना किसी परिणाम के महत्वपूर्ण जानकारी रखने की अनुमति मिलती है।


एक और चिंता अनुरोध प्रक्रिया की स्पष्ट जटिलता है। नागरिकों को ब्यूरोक्रेसी चैनलों के माध्यम से घूमना होगा, अंतहीन फॉर्म, शुल्क और लाल टेप का पता लगाना होगा ताकि वे जानकारी प्राप्त कर सकें। यह कठिन यात्रा कई व्यक्तियों को अपने अधिकारों का पीछा करने से रोकती है, प्रभावी ढंग से अपनी आवाज़ों को चुप रखती है और सार्वजनिक निरीक्षण को धक्का देती है।


सूचना के अधिकार के प्रावधानों का गलत उपयोग कर केन्द्रीय खान मंत्रालय द्वारा सूचना को साझा नहीं करने का ज्वलंत मामला हाल ही में प्रकाश में आया है|

छत्तीसगढ़ के जिले कोरबा में स्थित भारत एल्युमिनियम लिमिटेड के प्रतिष्ठान की विस्तार परियोजना एवं तथाकथित बंद एल्युमिनियम रिफाइनरी (जिसे काट कर कबाड़ में बेच दिया गया है), के संबंध में केन्द्रीय खान मंत्रालय से , प्राथी श्री संजय पटेल, निवासी रिज्दी ,कोरबा, जिला सचिव (इंटक) द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 , के तहत जानकारी मांगी गई थी|


उक्त सूचना प्रदान न करते हुए खान मंत्रालय के द्वारा प्रार्थी को यह सूचित कर दिया गया, कि बालको एक निजी संस्थान है एवं उसकी जानकारी मंत्रालय में उपलब्ध नहीं है |


खान मंत्रालय के उत्तर से क्षुब्ध होकर , प्रार्थी द्वारा अपील दायर की गई, जो कि अपीलीय अधिकारी द्वारा खारिज कर दी गई |


इस पर क्षुब्ध होकर प्रार्थी द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त के समक्ष अपील की गई, उक्त सुनवाई में खान मंत्रालय के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि बालको में भारत सरकार की 49% हिस्सेदारी है, और विनिवेश समझौते के अनुसार, बालको प्रबंधन के समस्त निर्णय , बिना सरकार द्वारा नामित निदेशकों की सहमति के नहीं किये जा सकते|


खान मंत्रालय के अधिकारीयों द्वारा यह भी स्वीकार किया गया कि, विनिवेश समझौते के तहत बालको प्रबंधन को समस्त वित्तीय संचालन से संबंधित दस्तावेज अनिवार्य रूप से केन्द्रीय खान मंत्रालय में जमा करना अनिवार्य है|


खान मंत्रालय के अधिकारीयों द्वारा यह भी स्वीकार किया गया कि, विनिवेश समझौते के तहत बालको प्रबंधन बिना खान मंत्रालय और सेल द्वारा नामित निदेशक की अनुमति के कोई भी नया बिजनेस शुरू नहीं कर सकती|

खान मंत्रालय के अधिकारीयों द्वारा यह भी कथन किया गया कि, विनिवेश समझौते के उन्लंधन के संबंध में उच्च न्यायालय में मामला चल रहा है ,और खान मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में भी याचिका दायर की है |

मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा उपरोक्त सारे पक्ष सुनते हुए खान मंत्रालय को निर्देश दिया कि आगामी 30 दिवसों में प्रार्थी द्वारा वांछित सूचना प्रदान की जाये|


उपरोक्त ज्वलंत मामले में खान मंत्रालय के अधिकारियों पर कई प्रश्न उठते हैं


१. प्रार्थी द्वारा बालको के विस्तार परियोजना एवं एल्युमिनियम रिफाइनरी एवं अन्य , कुल नौ बिन्दुओं पर सूचना के अधिकार के तहत , दिनांक 2/1/2023 को आवेदन प्रस्तुत किया गया था, दिनांक 17/01/2023 को प्रार्थी को अवगत कराया गया कि बालको विनिवेशित कंपनी है इसलिए सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर है | प्रार्थी द्वारा अपील दिनांक 07/02/2023 को की गई जिसे दिनांक 07/03/2023 को निरस्त किया गया, प्रार्थी द्वारा द्वितीय अपील मुख्य सूचना आयुक्त को दिनांक 21/03/2023 को की गई , जिसकी सुनवाई 18/06/2024 को कर आदेश जारी किया गया | मात्र सूचना प्राप्त करने के लिए प्रार्थी को सोलह माह का समय लगा और अभी तक सूचना अप्राप्त है, खान मंत्रालय के अधिकारी आखिर क्यों बालको प्रबंधन की सूचना छुपाने में लगे हैं?


२.यह प्रश्न भी उठता है कि , खान मंत्रालय को जब यह जानकारी है कि विनिवेश समझौते के विपरीत वेदांता प्रबंधन द्वारा कार्य किये गए हैं ,तो खान मंत्रालय द्वारा वेदांता प्रबंधन पर FIR क्यों नहीं दर्ज कराई गई?


३.क्या खान मंत्रालय के अधिकारी स्वयं , बालको प्रबंधन से अनुचित लाभ लेकर, सूचना देने के दायित्व से मुक्त हो रहे हैं?


शायद इन पश्नों का उत्तर लेने के लिए भी सूचना का अधिकार के तहत आवेदन करना पड़ेगा|


परन्तु चिंता की कोई बात नहीं है हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं इसलिए विष भी पीना पड़ेगा|


Disclaimer (लेखक द्वारा प्रकाशित खबर सूत्रों एवं तथ्यों पर आधारित है , यदि किसी व्यक्ति/समाज/संगठन को उपरोक्त लेख में कोई  शब्द/वाक्य आपत्तिजनक लगे तो वह हमें saursujla99@gmail.com पर संपर्क कर विवरण भेज सकता है, भेजे हुए विवरण का प्रेस काउंसिल आफ इंडिया की मागदर्शिका अनुसार  हमारे  सम्पादकीय दल द्वारा विश्लेषण एवं जांच उपरांत जांच रिपोर्ट प्रेषि

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