top of page
Search

जिले का जमींदार

  • Media Samvad Editor
  • Oct 20, 2024
  • 7 min read

बालको की रहस्यमयी भूमि लेनदेन: कब्जे, नामांतरण और भ्रष्टाचार के जाल की परतें खोलते हुए

बालको (भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड) और उसके भूमि अधिग्रहण की कहानी उलझी हुई है, जो पारदर्शिता और कानूनीता के बारे में सवाल उठाती है। 1968 में भूमि आवंटन के एक साधारण अनुरोध के साथ शुरू हुई यह यात्रा अब नामांतरण, अदालत के आदेशों और वित्तीय लेनदेन के जटिल जाल में फंस चुकी है। जब 2001 में बालको को निजीकरण के तहत वेदांता (पूर्व में स्टरलाइट) को सौंपा गया, तब से भूमि स्वामित्व से संबंधित कई गड़बड़ियाँ उजागर होने लगीं। निम्नलिखित तथ्य इस संभावना को उजागर करते हैं कि एक बड़े पैमाने पर भूमि घोटाला हो सकता है, जिसके गंभीर वित्तीय और कानूनी प्रभाव हो सकते हैं।

घटनाओं की प्रमुख समयरेखा

  1. 1968 में भूमि आवंटन का प्रारंभिक अनुरोध:

    वर्ष 1968 में, बालको ने सरकार से 1,616 एकड़ भूमि आवंटित करने का औपचारिक अनुरोध किया। इसने कंपनी और भूमि के बीच जटिल संबंधों की शुरुआत की, जो दशकों तक खिंचने वाला था।

  2. 2001 में बालको का निजीकरण:

    वर्ष 2001 में, भारत सरकार ने बालको में अपनी बहुमत हिस्सेदारी बेच दी, जिससे कंपनी का 51% हिस्सा स्टरलाइट (अब वेदांता) को चला गया। इस हस्तांतरण के बाद, बालको की भूमि स्वामित्व की स्थिति पर ध्यान केंद्रित होना शुरू हुआ, खासकर भूमि उपयोग और वित्तीय सौदों के संदर्भ में।

  3. 2010 में 1,804.7 एकड़ भूमि के कब्जे का उच्च न्यायालय द्वारा समर्थन:

    2010 में, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि बालको 1,804.7 एकड़ भूमि के वैध कब्जे में है। यह कानूनी समर्थन बालको के लिए न केवल एक जीत थी बल्कि एक महत्वपूर्ण पुष्टि भी थी कि उनका भूमि अधिकार वैध है। इस तथ्य की पुष्टि 2023-24 के वार्षिक रिपोर्ट में भी की गई है ।



  4. 2019 में 526 एकड़ कृषि भूमि का नामांतरण:

    वर्ष 2019 में, आदेश संख्या 5501060/141019/04427 एवं अन्य आदेशों के तहत,526 एकड़ कृषि भूमि, जिसमे ग्राम रिजदा के अंतर्गत अभिलेखित 438 एकड भूमि का नामांतरण किया गया, जिसे अब बालको के स्वामित्व में दिखाया गया। यह भूमि ग्राम रिजदा, एवं कोरबा तहसील, जिला कोरबा के तहत आती है और इसका भूमि प्रकार, वर्तमान में भी "कृषि भूमि" है। इस भूमि का औद्योगिक उपयोग होने का प्रकार पता होने के बाद भी “कृषि भूमि” के तहत नामांतरण किया जाना एक गंभीर प्रश्न चिन्ह खडा करता है|

  5. 2021 में विस्तार योजनाएँ और 2,718 एकड़ भूमि का दावा:

    वर्ष 2021 में , बालको ने एक नए स्मेल्टर परियोजना के लिए योजनाओं की घोषणा की, और दावा किया कि वह 2,718 एकड़ भूमि के कब्जे में है, जिसमें से उसके संयंत्र का क्षेत्रफल 948 एकड़ है। यह घोषणा, कि प्रस्तावित स्मेल्टर ग्राम रिजदा में स्थित है, भूमि स्वामित्व के संबंध में एक महत्वपूर्ण विवाद उत्पन्न करता है।

  6. 2019 से 2024 तक कोई नामांतरण नहीं, सरकार के रिकॉर्ड में खुलासा:

    वर्ष 2024 में, सरकारी भूमि पोर्टल से प्राप्त रिकार्ड दुरुस्तीकरण अभिलेख, ग्राम रिजदा , कोरबा के आधिकारिक रिकॉर्ड में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि 01 जनवरी 2019 से 10 अक्टूबर 2024 के बीच 544 आवेदन , नामांतरण हेतु दर्ज किए गए, एवं 421 प्रकरण निराकृत किए गए एवं 133 आवेदन निरस्त किए गए, जिसमें बालको के नाम पर किसी नामांतरण का उल्लेख नहीं है। यह तथ्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 526 एकड़ कृषि भूमि के बालको के स्वामित्व के दावे के विपरीत है। सवाल उठता है कि बालको ने यह भूमि कैसे हासिल की जब इसके नाम का औपचारिक नामांतरण का उल्लेख उपरोक्त सूची में नहीं है , परंतु खसरा क्रमांक 15002 एवं अन्य खसरों मे नामांतरण आदेश दिनांक 1 अक्टूबर 2019 का उल्लेख दर्ज है



  7. भूमि कब्जे में उलझनभरी विसंगतियाँ:

    संख्याएँ इस स्थिति को और अधिक उलझाती हैं:

    • उच्च न्यायालय ने 1,804.7 एकड़ भूमि के बालको के कब्जे की पुष्टि की।

    • बालको ने 2021 के विस्तार प्रस्ताव में 2,718 एकड़ भूमि के कब्जे का दावा किया।

    • सरकारी रिकॉर्ड में बालको के नाम 526 एकड़ कृषि भूमि का नामांतरण दिखाया गया है।

    • बैंकों ने बालको की 1,136 एकड़ और 949 एकड़ भूमि (कुल 2,085 एकड़) को व्यावसायिक भूमि के रूप में मान्यता दी और इस पर ₹2,000 करोड़ के ऋण दिए।

इसके अतिरिक्त, लगभग 949 एकड़ वन भूमि से संबंधित याचिका अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इन सब विसंगतियों के अलावा, बालको ने स्वयं , 2023-24 की अपनी ऑडिट रिपोर्ट में स्वयं यह बताया कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद ही 1,804 एकड़ भूमि के लिए लीज-डीड निष्पादित करेगी। इसके अलावा, बालको ने यह भी माना कि उसकी 300 एकड़ भूमि अनधिकृत कब्जे में है।

  1. भूमि स्वामित्व से जुड़े वित्तीय पहलू:

उपरोक्त तथ्यों से कुछ अत्यंत गंभीर प्रश्न उत्पन्न होते हैं :

  1. माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष प्रकरण में कृषि भूमि के स्वामित्व का कोई उल्लेख न तो बालको एवं न ही शासन द्वारा किया गया । प्रत्येक प्रकरण एवं बालको के वर्तमान ऑडिट रिपोर्ट में भी शासन द्वारा लीज- डीड के निष्पादित न होने का स्पष्ट उल्लेख है । ऐसी स्तिथि में वर्ष 2019 मे 526 एकड कृषि भूमि का बालको के पक्ष में नामांतरण किया जाना कैसे संभव हो सकता है ?

  2. वर्ष 2019 मे बालको को नामांतरित भूमि में कई दस्तावेजों का अवलोकन करने पर निम्न तथ्य प्रकाश में आते हैं , बालको के भूमि रिकार्ड जो सरकारी पोर्टल पर वर्ष 2019 में नामांतरण आदेश को संदर्भित करते हुए अभिलेखित हैं , इन रिकार्डों में निम्न टिप्पणियाँ स्वतः इस नामांतरण पर सवाल खड़ी कर देती हैं ।  

    a.      भूमि का नक्शा : उपलब्ध नहीं।

    b.      पूर्व पंजीयन ब्योरे : उपलब्ध नहीं

    c.      संपत्ति कर विवरण : उपलब्ध नहीं

    d.      पूर्व भू-स्वामी का नाम : उपलब्ध नहीं

    e.      भूमि पर मौजूद बिजली कनेक्शन: 

     DURA INDUSTRIES Raipur

    उपरोक्त तथ्य स्वतः इस पूरी नामांतरण प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करते हैं । जिस भूमि का पूर्व पंजीयन, पूर्व भू-स्वामी ,भूमि का नक्शा , संपत्ति कर विवरण ही सरकारी अभिलेख में नहीं है, तो क्या यह नामांतरण था ?, या फिर नामांतरण की आड़ में आबंटन जारी किया गया है?

  3.  शासन के द्वारा जारी वर्ष 2019 से 2024 तक ग्राम रिजदा की भूमि नामांतरण सूची का अवलोकन करने पर पता चलता है कि इन वर्षों में प्राप्त आवेदनों में एक भी आवेदन बालको के नाम से अभिलेखित नहीं है, शासन के द्वारा इसे तकनीकी त्रुटि बताया जा सकता है। परंतु क्या भूस्वामी (बालको) द्वारा भी विगत पाँच वर्षों से अपनी आडिट रिपोर्ट में इस नामांतरण, एवं कृषि भूमि का स्वामी होने का उल्लेख न करना, तकनीकी त्रुटि है, या फिर एक अत्यंत गंभीर भूमि-घोटाले का संकेत है ?

  4. वर्ष 2014 में शासन द्वारा , माननीय उच्च न्यायालय के वर्ष 2010 में जारी आदेश के परोक्ष में 4.73 एकड़ भूमि की लीज डीड , जो कि ग्राम रिजदा के परिसीमन में है, बालको के पक्ष में निष्पादित की गई, उक्त भूमि की लीज पर शासन को लगभग 4 करोड़ 26 लाख रुपये का प्रीमियम एवं वार्षिक लगभग 32 लाख रुपये , का राजस्व प्राप्त हुआ है। ऐसी स्तिथि में वर्ष 2019 में कृषि भूमि का नामांतरण किया जाना, क्या बालको के वेदांता प्रबंधन को वित्तीय लाभ पहुंचा कर , शासन को अत्यंत गंभीर राजस्व की क्षति पहुँचाने का कृत्य हो सकता है ?

  5. बालको के वित्तीय दस्तावेजों का अवलोकन करने पर पता चलता है, की बालको द्वारा 2085 एकड़ भूमि को “कमर्शियल” भूमि घोषित कर, वित्तीय संस्थानों द्वारा 2000 करोड़ के ऋण प्राप्त किए गए हैं, तदुपरांत भी 526 एकड भूमि का कृषि भूमि नामांतरण, क्या शासन एवं वित्तीय संस्थानों को गुमराह करने के कृत्य नहीं हैं ?

उपरोक्त तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि बालको ने अपने भूमि स्वामित्व को औपचारिक रूप से लीज-डीड के माध्यम से संपन्न नहीं किया क्योंकि इससे कंपनी को भारी वित्तीय बोझ उठाना पड़ता। वर्तमान दरों पर लीज-डीड का निष्पादन करने से बालको को भारी अग्रिम प्रीमियम और आवर्ती किराये का भुगतान करना पड़ता। उदाहरण के लिए, 2014 में, बालको ने मात्र 4.73 एकड़ भूमि के लिए ₹4.23 करोड़ प्रीमियम और लगभग ₹35 लाख वार्षिक किराये और उपकर का भुगतान किया। लीज-डीड निष्पादन से बच कर शायद बालको इस तरह के वित्तीय बोझ से बच सकता है, जिससे यह संभावना प्रबल होती है कि कृषि भूमि का नामांतरण बालको को इस वित्तीय बोझ से बचा रहा है। एवं मामला उजागर होने पर, भूमि उपयोग परिवर्तन मात्र एक औपचारिकता हो सकती है, जो इतनी भारी वित्तीय बाधा उत्पन्न नहीं करती

  1. सरकारी राजस्व नुकसान और संभावित भूमि घोटाला:

    यदि यह संभावना सही साबित होती है कि बालको लीज-डीड के निष्पादन से बचकर वित्तीय बोझ से बचने की कोशिश कर रहा है, तो यह एक बड़ा भूमि घोटाला होगा, जो सरकार के लिए भारी राजस्व नुकसान का कारण बनेगा। पिछले पाँच वर्षों में सरकारी रिकार्ड की नामांतरण सूची में बालको के भूमि नामांतरणों का उल्लेख नहीं होने की पुष्टि से यह संभावना और प्रबल हो जाती है कि यह भूमि स्वामित्व को लेकर एक सुनियोजित घोटाला है

  2. बालको: कोरबा का 'गौटीया' (जमींदार):

    उपरोक्त मामले की जांच होने तक, फिलहाल तो ,छत्तीसगढ़ में बड़े भू-स्वामियों के सम्मान के लिए इस्तेमाल होने वाली उपाधि 'गौटीया' बालको के लिए उपयुक्त प्रतीत होती है, जो अब कोरबा में सबसे बड़ा "किसान" नजर आ रहा है। कृषि भूमि के विशाल हिस्से का स्वामित्व प्राप्त करके, बालको आधुनिक युग का जमींदार बन गया है, जो भूमि स्वामित्व से जुड़े कानूनी और वित्तीय नियमों को दरकिनार कर रहा है।

निष्कर्ष:बालको के भूमि लेनदेन से संबंधित तथ्य जटिल हैं और एक संभावित बड़े भ्रष्टाचार घोटाले की ओर इशारा करते हैं। भूमि स्वामित्व में विसंगतियाँ, सरकारी रिकॉर्ड में नामांतरण का अभाव और लीज-डीड निष्पादन से बचने के वित्तीय उद्देश्यों से यह संकेत मिलता है कि गहन जाँच की आवश्यकता है। यह जाँच सरकारी राजस्व को नुकसान पहुँचाने वाली गड़बड़ियों और 'कोरबा के गौटीया' के रूप में बालको की भूमिका को उजागर कर सकती है। जो भी दोषी हैं, उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।

विशेष: हमारी टीम द्वारा अथक मेहनत और प्रयास कर तथ्यों का संचय कर लेख प्रकाशित किये जाते हैं, पाठकों के द्वारा हमारे प्रकाशन का, समाज में संचार ही  हमारी टीम के सत्य उजागर करने के प्रयासों को प्रेरणा देगा| पाठकों से अपेक्षा है कि प्रकाशित लेखों का संचार  करने में हमारी मदद करें|

Disclaimer (लेखक द्वारा प्रकाशित खबर सूत्रों एवं तथ्यों पर आधारित है, एवं कई तथ्यों का किसी अन्य भाषा से अनुवाद किया गया है ,यदि किसी व्यक्ति/समाज/संगठन को उपरोक्त लेख में कोई  शब्द/वाक्य आपत्तिजनक लगे तो वह हमें editor@media-samvad.com पर संपर्क कर विवरण भेज सकता है, भेजे हुए विवरण का प्रेस काउंसिल आफ इंडिया की मागदर्शिका अनुसार एवं  हमारे  सम्पादकीय दल द्वारा विश्लेषण एवं जांच उपरांत जांच रिपोर्ट प्रेषित किया जाएगा और जांच अनुसार  प्रकाशित लेख की पुनः विवेचना कर प्रकाशित किया जा सकेगा |

 
 
 

Comments


Subscribe to Our Newsletter

Thanks for submitting!

  • White Facebook Icon

© 2035 by Media Samvad. Powered and secured by Wix

मीडिया संवाद पत्रिका  
वेब पोर्टल 

​संचालक:राधेश्याम चौरसिया 

​RNI No. CHHHIN/2011/43442

bottom of page