पिस रहे मजदूर – श्रम विभाग क्यों है मजबूर
छत्तीसगढ़ राज्य , देश के सबसे शांतिप्रिय राज्यों में से एक माना जाता है, उद्योगों के संचालन के लिए अनुकूल वातावरण और खनिज एवं संपदा से भरपूर राज्य के निवासी अत्यंत सहनशील और मिलनसार व्यवहार के लिए प्रसिद्ध हैं और “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” ही उनकी पहचान है|
छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे अधिक औद्योगिक एवं प्राकृतिक संपदा से अग्रणी जिले कोरबा में स्थानीय निवासियों का उद्योगपतियों द्वारा शोषण अब आम बात हो चुकी है और जन-संपर्क माध्यमों के लिए भी अब यह मुद्दे कोई मायने नहीं रखते हैं| और यह सत्य भी है, कि क्रिकेट/राजनीति/कॉर्पोरेट पीआर के मुद्दों और विज्ञापनों के सामने श्रमिकों के शोषण के मुद्दे राजस्व प्रदान नहीं करते हैं| और स्थानीय निवासी भी अपने सहनशील और मिलनसार संस्कारों के अनुसार, अपने आप को हालात अनुसार ढाल चुके हैं|
उद्योगपतियों के पी.आर और पहुँच के सामने प्रशासन की विवशता स्पष्ट झलकती है, श्रम विभाग, कोरबा, ज्ञात रहे की वर्तमान श्रम मंत्री का गृह जिला भी कोरबा ही है, इस विभाग की विवशता अन्य प्रशासनिक विभागों से कुछ ज्यादा ही प्रतीत होती है|
राज्य में औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधान लागू हैं और इन प्रावधानों के तहत प्रभारी सहा. श्रमायुक्त , कोरबा, को संराधन अधिकारी की शक्ति एवं अधिकार प्राप्त हैं|
प्रावधानों के अनुसार यदि कोई भी औद्योगिक विवाद , संराधन अधिकारी के समक्ष लंबित है, तो उस विवाद की विषयवस्तु और प्रभावित होने वाले कर्मियों पर कोई भी कार्यवाही करने से पूर्व , नियोक्ता को संराधन अधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य है|
बालको कर्मचारी संघ(भा.म.स), जो कि आर.एस.एस का अनुषांगिक संगठन भी है, के द्वारा सहायक श्रमायुक्त कार्यालय /संराधन अधिकारी के समक्ष बालको कर्मियों की सेवा शर्तों के सबंध में विवाद प्रस्तुत किया गया है , जिसमे बालको प्रबंधन द्वारा अनुचित श्रम प्रक्रिया कर कर्मियों का स्थानातरण एक मुख्य विषय है , और विवाद पर सुनवाई लंबित है|
परन्तु बालको प्रबंधन ने अपने पी.आर पर आत्मविश्वास और सिंह साहब की पहुँच और पहचान की शक्ति के दम पर, अपने अधिकारीयों विजय साहू और सुधीर कुमार के द्वारा, कर्मी को बुला कर धमकाया कि श्रमिक संगठन का सृजन नहीं होना चाहिए, और बिना संराधन अधिकारी की अनुमति के कर्मी का स्थानांतरण आदेश जारी कर दिया|
संराधन अधिकारी को सूचना दिए जाने के बाद भी , उक्त अधिकारी के द्वारा की गई कार्यवाही की सूचना अभी तक तो कर्मी को अप्राप्त है|
इस घटनाक्रम को देखें तो कुछ प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं |
क्या संराधन अधिकारी भी सिंह साहब की पहुँच और बालको के पी.आर के सामने नतमस्तक हैं?
श्रम मंत्री का गृह जिला होने के बाद भी श्रम विभाग, कोरबा की ऐसी लापरवाही क्या प्रदर्शित करती है?
क्या माननीय श्रम मंत्री को भी अपने विभाग की लापरवाही एवं गैर-जिम्मेदारी की जानकारी है?
क्या सिंह साहब की पहुँच और पी.आर का प्रभाव मंत्रीजी पर भी भारी है?
यह कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर तो आने वाले वक्त में ही मिलेगा|
सिंह साहब की महिमा-वंदन पर लेख अगले अंको में प्रकाशित किये जायेंगे |
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