प्रबंधन/ठेकेदार का अत्याचार – श्रमिक लाचार
- Media Samvad Editor
- Jul 7, 2024
- 4 min read

प्रबंधन/ठेकेदार का अत्याचार – श्रमिक लाचार
देश की अर्थव्यवस्था को माकूल और मजबूत बनने के संकल्प में हर देशवासी प्रयत्नशील है | और इन प्रयासों में सबसे अधिक जोर व्यापार बढ़ाने, व्यापार को सुगम बनाने के प्रयास अग्रणी हैं| परन्तु इन व्यापार प्रमुख केंद्रित प्रयासों से श्रमिक, जो कि, किसी भी व्यापार की रीढ़ की हड्डी होते हैं, उनके मानवाधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है| आज के लेख में हम इस सत्यता को एक हाल ही में प्रकाश में आई घटना के माध्यम से विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं|
हमारी टीम को कुछ दिन पहले सूचना प्राप्त हुई, कि छत्तीसगढ़ राज्य के उद्योग एवं श्रम मंत्री के गृह जिले में स्थापित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदांता के अंतर्गत कार्य करने वाले श्रमिकों को बुनियादी सुविधाएँ, जैसे कि न्यूनतम वेतन, ESI, EPF, बोनस, अवकाश, सुरक्षा सामग्री, कैंटीन सुविधा, रेस्ट रूम तक न दे कर, कई वर्षों से , श्रमिकों की भेद्यता (vulnerability) का फायदा उठाते हुए, उन्हें काम से निकालने की धमकी देकर कार्य करवाया जा रहा है|
हमारी टीम द्वारा, श्रम मंत्री के स्वयं के गृह जिले में होने वाले श्रमिकों के साथ इस घिनौने कृत्य की जांच करने पर निम्न तथ्य प्रकाश में आये हैं :
श्रमिकों को बाल्को टाउनशिप के दैनिक रखरखाव के कार्यों जैसे कि , साफ-सफाई, सिविल/इलेक्ट्रिकल कार्य, गार्बेज सफाई ,जल व्यवस्था, सीवर क्लीनिंग इत्यादि जैसे कार्यों में ठेकेदार के माध्यम से नियोजित किया गया है|
इनमें से अधिकांश श्रमिक विगत 3 से 10 वर्षों से कार्य कर रहे हैं|
श्रमिकों के कथन अनुसार विगत लगभग तीन वर्षों से ए.के सिन्हा नाम के ठेकदार को इन श्रमिकों से कार्य कराने का ठेका बाल्को के वेदांता प्रबंधन द्वारा दिया गया है|
श्रमिकों द्वारा बताया गया कि विगत तीन वर्षों एवं पूर्व के ठेकेदारों द्वारा भी, श्रमिकों की भविष्य निधि राशि वेतन से काटी गई पर उसे उनके भविष्य निधि खाते में जमा नहीं किया गया|
ESI की सुविधा से उन्हें वंचित रखा गया|
किसी भी ठेकेदार द्वारा बोनस, अवकाश नगदीकरण प्रदान नहीं किया गया|
सुरक्षा सामग्री भी प्रदान नहीं की गई |
रेस्ट रूम की कोई सुविधा नहीं है |
केंटिन की कोई सुविधा नहीं है |
अन्य कर्मियों की भांति गेटपास न प्रदान कर भेदभाव किया जा रहा है|
श्रमिकों द्वारा इन कृत्यों की शिकायत, अपने श्रमिक संगठन, बाल्को कर्मचारी संघ(बी.एम्.एस) के माध्यम से , जिला श्रम विभाग एवं भविष्य निधि आयुक्त एवं जिला जनदर्शन अधिकारी के समक्ष भी की गई| परन्तु कार्यवाही की सूचना अप्राप्त है|
श्रमिकों द्वारा जनवरी माह में आंदोलन करने पश्चात ,ठेकेदार द्वारा हाजरी कार्ड, वेतन पर्ची, सुरक्षा जूते देना प्रारंभ किया गया है , परन्तु पूर्व का बकाया भुगतान/भविष्य-निधि राशि/बोनस/अवकाश नगदीकरण, गेटपास , केंटिन सुविधा, रेस्ट रूम नहीं दिया जाकर, वेदांता प्रबंधन द्वारा मना किया गया है बताया जा रहा है |
सीवरेज में कार्य करने वाले श्रमिकों द्वारा बताया गया कि उन्हें गटर में उतारते वक्त आवश्यक सुरक्षा सामग्री , आक्सीजन, तक प्रदान नहीं किया जाता है|
अगर अंतर्राष्ट्रीय मानकों जैसे कि ILO कन्वेंशन 29 , की माने , जिसकी भारत सरकार द्वारा भी पुष्टि (Ratify) किया गया है, तो उपरोक्त कृत्य जबरन मजदूरी (Forced Labour), की श्रेणी में जांच करने के योग्य कृत्य हैं|
मानवाधिकारों के स्पष्ट उन्लंघन का कृत्य होने और शिकायतों पर भी कोई कार्यवाही न होने पर कुछ स्वाभाविक प्रश्न उठते हैं:
क्या जिला श्रम विभाग, Ease of Doing Business की पॉलिसी को श्रमिकों के अधिकारों के हनन की कीमत पर लागू करना चाहता है?
क्या श्रम मंत्री जी को, अपने विभाग के अधिकारियों की व्यापारियों के साथ मिल कर श्रमिकों के अधिकारों के हनन के कृत्यों की जानकारी है?
क्या भविष्य निधि विभाग इन अपराधिक कृत्यों पर रोक लगाने में अक्षम है?
क्या भविष्य निधि विभाग में ट्रस्टी रहने वाले श्रमिक प्रतिनधि इन कृत्यों पर कुछ अंकुश लगा पाएंगे?
क्या वेदांता प्रबंधन को ठेकेदार के इन कृत्यों की जानकारी थी, प्रमुख नियोक्ता होने के कारण क्या वेदांता प्रबंधन भी इसमें शामिल है?
क्या मानवाधिकार विभाग इस पर कड़ी कार्यवाही करेगा?

यह कुछ प्रश्न हैं, जिनका उत्तर आने वाले वक्त में ही मिलेगा, फ़िलहाल यह एक विडंबना ही कही जा सकती है कि आजादी के अमृत महोत्सव के काल में ऐसे कृत्य अभी भी विद्यमान हैं|
हालांकि आसानी से व्यापार करने की नीति ने निस्संदेह भारत के आर्थिक विकास को सुविधाजनक बना दिया है, इसका कार्यान्वयन श्रमिकों के अधिकारों और गरिमा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि नीति निर्माता उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और प्रगति के इंजन - श्रमिकों के हितों की रक्षा के बीच एक नाजुक संतुलन को न तोड़ दें। EoDB के दुष्प्रभावों को पहचानकर और उनसे निपटने के लिए व्यावहारिक कदम उठाकर, हम एक मजबूत, अधिक उचित समाज का निर्माण कर सकते हैं जहां हर कोई भारत की उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि से लाभ उठा सकता है।
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