बाल्को की छिपी दौलत: भूमि मूल्यांकन घोटाला जिसने भारत के निजीकरण को हिला दिया – भाग 3
इस तीसरे लेख में हम बालको के विनिवेश और ज़मीन के स्वामित्व में छिपी एक और गहरी साजिश का पर्दाफाश करते हैं। जहां पिछले लेखों में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए थे, यह लेख वेदांता प्रबंधन द्वारा बालको की जमीन के स्वामित्व को लेकर रचे गए छलावे पर केंद्रित है। कानूनी विवादों और अनिर्णीत टाइटल डीड के बावजूद, वेदांता ने 2,080 एकड़ जमीन गिरवी रखकर ₹2,000 करोड़ का ऋण लिया, जबकि इस जमीन की कानूनी स्थिति अभी भी अनिश्चित है।
घटनाओं की समयरेखा: ज़मीन के छलावे की कहानी
तारीख | घटना |
18 मार्च 1968 | मध्य प्रदेश सरकार ने बालको कोरबा एल्युमिनियम के लिए आवश्यक भूमि की जानकारी मांगते हुए आदेश जारी किया। |
13 जून 1968 | बालको के प्रबंध निदेशक ने 1,616 एकड़ भूमि की मांग की। |
2001 (विनिवेश) | विनिवेश के दौरान, सरकार ने घोषणा की कि बालको की जमीन के लिए कोई टाइटल डीड निष्पादित नहीं हुआ है, जिससे इसे मूल्यांकन से बाहर रखा गया। |
7 जुलाई 2007 | कलेक्टर कोरबा ने केंद्रीय सशक्त समिति को बताया कि बालको के पास 2,780 एकड़ ज़मीन है, जिसमें 288 एकड़ वन भूमि का भी अवैध अतिक्रमण शामिल है। |
5 फरवरी 2010 | उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि बालको के पास 1,840.67 एकड़ भूमि का कानूनी स्वामित्व है; वन भूमि का मामला अभी भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा कर रहा है। |
1 अक्टूबर 2019 | बालको के पक्ष में 526 एकड़ कृषि भूमि का नामांतरण किया गया। |
31 मार्च 2024 | बालको की बैलेंस शीट में ₹17.44 करोड़ का मूल्य उसकी फ्रीहोल्ड भूमि के रूप में घोषित किया गया। |
पहला रहस्य: आंकड़ों का खेल
2001 में बालको के विनिवेश के दौरान, सरकार ने घोषणा की कि बालको की जमीन के लिए कोई टाइटल डीड निष्पादित नहीं हुआ है, जिससे इसके वास्तविक स्वामित्व पर संदेह बना रहा। इस कारण से, इस जमीन को मूल्यांकन से बाहर रखा गया, जिससे बालको के संपत्ति मूल्य को बहुत कम आंका गया।
लेकिन असली सवाल तब उठता है जब 2007 में कलेक्टर कोरबा ने एक पत्र में बताया कि बालको के पास 2,780 एकड़ भूमि है। आइए इस भूमि का वितरण देखें:
914.31 एकड़ निजी अधिग्रहण।
929.81 एकड़ सरकारी आवंटन।
936.52 एकड़ अवैध अतिक्रमण, जिसमें 288 एकड़ वन भूमि भी शामिल है।
यह कैसे संभव हुआ कि बालको इतने विवादित भूमि क्षेत्र का दावा कर सका, जबकि इसका स्वामित्व कानूनी तौर पर स्पष्ट नहीं था?।
चार्ट 1: बालको की घोषित ज़मीन (2007) और उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की गई ज़मीन (2010)
भूमि श्रेणी | 2007 में घोषित (एकड़) | 2010 में पुष्टि (एकड़) |
निजी अधिग्रहण | 914.31 | 914.31 |
सरकारी आवंटन | 929.81 | 929.81 |
अवैध अतिक्रमण | 936.52 | 0 (सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा) |
कुल | 2,780 | 1,840.67 |
दूसरा रहस्य: बिना जमीन के ऋण
2010 में उच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद, जिसने बालको के पास केवल 1,840.67 एकड़ भूमि का कानूनी स्वामित्व निर्धारित किया, वेदांता ने 2,080 एकड़ जमीन गिरवी रखकर ₹2,000 करोड़ का ऋण लिया।
कैसे बालको ने उस ज़मीन को गिरवी रखा जो उसके पास कानूनी रूप से नहीं थी?
इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि इस भूमि के लिए टाइटल डीड कभी निष्पादित नहीं हुआ। वन भूमि जो विवादित है, तब तक स्थानांतरित नहीं की जा सकती जब तक कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय नहीं आ जाता। इसके बावजूद, वेदांता ने इन जमीनों पर बड़े ऋण हासिल कर लिए।
चार्ट 2: ऋण प्राप्त भूमि और कानूनी स्वामित्व की तुलना
गिरवी रखी भूमि | क्षेत्र (एकड़) | प्राप्त ऋण (₹ करोड़) |
1,136 एकड़ (पहला ऋण) | 1,136 | ₹1,000 करोड़ |
944 एकड़ (दूसरा ऋण) | 944 | ₹1,000 करोड़ |
कुल | 2,080 | ₹2,000 करोड़ |
उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की गई भूमि | 1,840.67 | (सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा) |
तीसरा रहस्य: खसरा संख्या की पहेली
वेदांता ने मुख्य फैक्ट्री इंस्पेक्टर को दिए गए दस्तावेज़ों में खसरा नंबर 535/1 (13.57 एकड़) और 534/4 (19 एकड़) का भी उल्लेख किया। यह दोनों जमीनें सिंचित कृषि भूमि हैं, लेकिन इन जमीनों का स्वामित्व छत्तीसगढ़ सरकार के पास है, न कि बालको के पास। यह सवाल खड़ा करता है: वेदांता ने सरकारी भूमि पर स्वामित्व का दावा कैसे किया और अपनी संपत्ति को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया? यह रणनीति और भी संदेह पैदा करती है, जिससे यह जाहिर होता है कि सार्वजनिक संसाधनों के शोषण की एक बड़ी योजना चल रही है।
चौथा रहस्य: ज़मीन का मूल्य रहस्य
बालको की 31 मार्च 2024 की बैलेंस शीट में उसकी फ्रीहोल्ड भूमि का मूल्य केवल ₹17.44 करोड़ दिखाया गया। कैसे इतनी बड़ी जमीन—2,000 एकड़ से अधिक—का मूल्य केवल ₹17.44 करोड़ हो सकता है? जब भूमि की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, तो यह मूल्यांकन एकदम गलत लगता है, शायद बालको की संपत्ति के सही मूल्य को छिपाने के लिए।(इसके कारणों का उल्लेख अगले लेख में किया जाएगा )
निष्कर्ष: सस्पेंस जारी है
यह लेख एक सुनियोजित रणनीति का खुलासा करता है, जिसमें जानबूझकर गलत जानकारी, कानूनी खामियों और सार्वजनिक संसाधनों के शोषण का इस्तेमाल किया गया। वेदांता मैनेजमेंट ने बिना कानूनी स्वामित्व के ज़मीनों को गिरवी रखकर बड़े ऋण हासिल किए हैं। ₹2,000 करोड़ का ऋण उस ज़मीन पर लिया गया, जिसका स्वामित्व बालको के पास नहीं है, और जिसका टाइटल डीड अभी भी निष्पादित नहीं हुआ है।
लेकिन यह कहानी का अंत नहीं है। अगले लेख में हम और गहराई में जाएंगे कि कैसे वित्तीय संस्थानों ने वेदांता को इस तरह के संदेहास्पद लेन-देन में मदद की और इसके संभावित परिणामों पर चर्चा करेंगे।
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