अन्याय के आँसू
कारखाने के कठोर गलियारों में, जहाँ मशीनों की गड़गड़ाहट इंसानियत की आवाज़ को दबा देती है, एक और कहानी सामने आती है—शोषण और धोखे की। इस बार यह ऑपरेटरों की टूटी हुई कमर की बात नहीं, बल्कि उन हाशिए पर खड़ी महिलाओं की दबी हुई आवाज़ है, जिन्होंने वर्षों तक समर्पण और वफादारी से कंपनी की सेवा की। लेकिन उनकी निष्ठा का कोई मोल नहीं, क्योंकि यह व्यवस्था मौन और अन्याय पर चलती है।
मितान बाई (परिवर्तित नाम) की न्याय की पुकार
मितान बाई , एक साधारण महिला जो स्थानीय मूल निवासी समुदाय से आती हैं, ने पिछले पाँच वर्षों से बालको/वेदांता फैक्ट्री में हाउसकीपिंग का काम किया। उनका काम बेमिसाल था। हर साल उनकी हाज़िरी और उनकी मेहनत सराहनीय रही। लेकिन 8 जून 2023 को बिना किसी चेतावनी या कारण के, उनका गेट पास ब्लॉक कर दिया गया, जिससे उनकी रोज़ी-रोटी छिन गई।
बेबस होकर, उन्होंने अपने पर्यवेक्षक, श्री क़ुरेशी से संपर्क किया। उन्हें बताया गया कि यह निर्णय बालको प्रबंधन के आई. आर हेड ने लिया है, और क़ुरेशी का इसमें कोई हाथ नहीं है। मितान बाई , उलझन और पीड़ा में, इसका कारण पूछने लगीं—आखिर उनका गेट पास क्यों ब्लॉक किया गया? क्या कोई अनुशासनहीनता हुई थी, जिसके लिए उन्हें सज़ा दी जा रही थी? वह अपना पक्ष समझाना चाहती थीं, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। न तो कोई शोकॉज नोटिस, न कोई निलंबन पत्र, बस मौन।
पाँच महीनों तक उन्हें एक मामूली निलंबन भत्ता दिया गया, जो उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं था, और फिर वह भी बंद कर दिया गया। मितान बाई , और कई अन्य की तरह, अदृश्य हो गईं—एक ऐसी व्यवस्था में, जो अपने श्रमिकों को केवल एक आँकड़ा मानती है। तब से, कोई भी अधिकारी उनके मुद्दे को सुनने या समझने के लिए तैयार नहीं है।वेदांता प्रबंधन के आधिकारिक पोर्टल पर आई. डी नंबर 446785812102 दिनांक 25/8/2024 ,दर्ज शिकायत अनुसार "यह खुले तौर पर स्थायी आदेशों का उल्लंघन है," मितान बाई कहती हैं, "और मेरे सम्मान पर सीधा हमला है। अब मुझे अपनी रोज़ी-रोटी के लिए भीख मांगने पर मजबूर किया गया है। मुझे अब ऐसे रास्ते अपनाने पड़ रहे हैं, जो एक महिला के सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक हैं।"
रागिनी मंडल (परिवर्तित नाम) का संघर्ष
रागिनी मंडल की कहानी भी मितान बाई की तरह ही है। मितान बाई की तरह, उन्होंने भी पाँच वर्षों तक हाउसकीपिंग में काम किया और उनकी हाज़िरी और मेहनत की मिसाल दी जाती थी। लेकिन 3 जून 2023 को, बिना किसी कारण या चेतावनी के, उनका गेट पास भी ब्लॉक कर दिया गया। वही नाम सामने आए—बालको आई.आर हेड। उनके पर्यवेक्षक, श्री क़ुरेशी, ने फिर से खुद को इस निर्णय से अलग कर लिया।
रागिनी भी इसका कारण जानना चाहती थीं। उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि उन्होंने कौन-सा नियम तोड़ा है, लेकिन किसी ने उन्हें जवाब नहीं दिया। मितान बाई की तरह, उन्हें भी पाँच महीने तक निलंबन भत्ता दिया गया और फिर वह भी बंद हो गया। प्रबंधन की ओर से सिर्फ मौन था।वेदांता प्रबंधन के आधिकारिक पोर्टल पर आई. डी नंबर 992877634702 दिनांक 25/8/2024 ,दर्ज शिकायत अनुसार
"इसने मुझे बुरी स्थिति में डाल दिया है," रागिनी कहती हैं। "मैं एक हाशिए पर खड़ी महिला हूँ, जो जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही है। इन अधिकारियों ने मुझे बेकार महसूस कराया है, और अब मुझे ऐसे रास्ते अपनाने पड़ रहे हैं, जो मेरे सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए घातक हैं।"
उनकी प्रार्थना स्पष्ट है: "मैं न्याय चाहती हूँ। मैं एक जाँच चाहती हूँ। अगर मैं किसी भी चीज़ की दोषी हूँ, तो मैं परिणाम स्वीकार करूंगी, लेकिन मैं ऐसी सज़ा कैसे स्वीकार कर सकती हूँ, जिसके लिए मैंने कुछ भी गलत नहीं किया?"
अन्याय जारी है
मितान बाई और रागिनी मंडल केवल दो महिलाएँ नहीं हैं—वे उस पूरे श्रम वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्हें चुप करा दिया गया है, शोषित किया गया है, और संघर्ष करने पर मजबूर किया गया है। उनकी कहानियाँ एक बड़ी प्रणालीगत समस्या को दर्शाती हैं, जहाँ नियमों और अधिकारों की अवहेलना की जाती है और मूल निवासी समुदायों के श्रमिकों को बेकार मान लिया जाता है।
इन अधिकारियों द्वारा अपनाए गए अमानवीय व्यवहार ने न केवल इन महिलाओं की नौकरियाँ छीनी हैं, बल्कि उन्हें ऐसे रास्तों पर धकेल दिया है, जो उनके सम्मान के लिए हानिकारक हैं। उनके लिए यह कार्यस्थल एक युद्ध का मैदान बन गया है, जहाँ जीवित रहना एक निरंतर संघर्ष है, और सम्मान केवल एक दूर का सपना बन गया है।
जैसे-जैसे हम उनकी कहानियाँ सुनते हैं, सवाल और भी गहरा होता जाता है: यह अन्याय कब तक जारी रहेगा? हाशिए पर खड़े मूल निवासी श्रमिकों को कब तक मौन रहकर इस शोषण का सामना करना पड़ेगा? बालको के ऐसे असुर रूपी अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, और जो व्यवस्था उन्हें बचाती है, उसे ध्वस्त किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
मितान बाई और रागिनी मंडल का संघर्ष केवल उनका नहीं है—यह उन हाशिए पर खड़े समुदायों के शोषण का प्रतीक है, जो उद्योगों में निरंतर जारी है। ये महिलाएँ केवल अपनी नौकरियों के लिए नहीं, बल्कि अपने सम्मान, प्रतिष्ठा, और बिना डर के जीवित रहने के अधिकार के लिए लड़ रही हैं।
"आजादी के स्वर्णिम महोत्सव में भी, हमें ऐसे नेतृत्वकर्ताओं की जरूरत महसूस हो रही है, जो इन अत्याचारों के खिलाफ एक संघर्ष की अगुवाई कर सकें।" उनकी न्याय की पुकार सत्ता के गलियारों में गूंजती है, लेकिन क्या इसे सुना जाएगा?
जब तक नहीं, तब तक उनका अन्याय का मौन आँसू इस बात की एक कड़वी याद दिलाता रहेगा कि शोषण के सामने चुप्पी कितनी महंगी पड़ती है।
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