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सरकारी आदेश का पालन : शोषण की कहानी

  • Media Samvad Editor
  • Aug 29, 2024
  • 5 min read

स्वास्थ्य जांच की अग्निपरीक्षा - कर्मचारी का लाभ या नुक्सान

कर्मचारी के स्वास्थ्य की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए हर साल अनिवार्य रूप से स्वास्थ्य जांच कराना प्रत्येक नियोक्ता के लिए एक सरकारी आदेश है। यह जांच 'पीएमई' के नाम से जानी जाती है। पहली नज़र में, यह एक प्रशंसनीय कदम लगता है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई कुछ और ही है। कल्पना कीजिए कि इसी स्वास्थ्य जांच के आधार पर किसी कर्मचारी की नौकरी छीन ली जाए।


यह कोई काल्पनिक स्थिति नहीं है, बल्कि बाल्को के कर्मचारियों के साथ हो रहा एक वास्तविक शोषण है। बाल्को अस्पताल में हर दिन 100 से अधिक कर्मचारियों की स्वास्थ्य  जांच की जाती  है, जिसमें ब्लड शुगर, बीपी, कोलेस्ट्रॉल, दृष्टि, सुनने की क्षमता आदि की जांच शामिल है। बाल्को प्रबंधन के अनुसार, हर कर्मचारी को प्रबंधन द्वारा निर्धारित समय पर अनिवार्य रूप से इन परीक्षणों के लिए उपस्थित होना होता है।


शायद आप सोच रहे होंगे कि यह एक बहुत ही अच्छा कदम है और इस तरह की पहल की सराहना होनी चाहिए। लेकिन कहानी यहाँ से शुरू होती है। जिस अस्पताल में यह पीएमई की जांच होती है, उसे बाल्को प्रबंधन द्वारा एक Occupational Health Centre (OHC) घोषित किया गया है। इस अस्पताल का निर्माण आपातकालीन स्थितियों और कर्मचारियों और उनके परिवारों की अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज  के लिए किया गया था। लेकिन अब इस अस्पताल में एक विशेष विभाग बनाया गया है, जहाँ हर दिन लगभग 100 कर्मचारियों की जांच की जाती है। सोचिए, एक पैथोलॉजी विभाग जिसमें केवल 2 तकनीशियन होते हैं, उन्हें हर दिन 100 कर्मचारियों की जांच करनी होती है।


अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें शोषण की बात कहाँ है? असली समस्या तब शुरू होती है जब इन परीक्षणों के आधार पर रिपोर्ट उसी दिन तैयार की जाती है, जिसे कर्मचारी को अस्पताल से निकलने से पहले या ऑफिस समय के दौरान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होता है। इस रिपोर्ट का इंतजार करना किसी बोर्ड परीक्षा के परिणाम का इंतजार करने जैसा होता है, जिसमें छात्र का भविष्य, परिणाम पर निर्भर करता है।


हाँ, यह सच है! रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद, असहाय  कर्मचारी सबसे पहले यह देखते हैं कि क्या रिपोर्ट पर 'अनफिट/अस्थायी अनफिट/फिट' की मुहर लगी है। इन तीन मुहरों के आधार पर ही कर्मचारियों की नौकरी जारी रहने का फैसला होता है।


आइए इसे निम्नलिखित स्थिति से समझते हैं:( काल्पनिक नाम )


राम, रहीम, सतनाम और जॉर्ज - ये चारों कर्मचारी एक ही दिन पीएमई के लिए उपस्थित होते हैं। संयोगवश, ये चारों बाल्को प्लांट के एक ही विभाग में काम करते हैं, और इनके वर्तमान ठेकेदार नियोक्ता भी समान हैं, और ये सभी समान प्रकार के काम करते हैं।

पीएमई के परिणाम:

  1. राम (आयु: 25 वर्ष) - फिट घोषित किया गया। वह बहुत खुश है और अगली पीएमई तक उसे स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी नहीं होगी।

  2. रहीम (आयु: 30 वर्ष) - अस्थायी अनफिट घोषित किया गया, किडनी में एक छोटा पत्थर पाया गया और उसे विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी गई। उसे कुछ दवाइयाँ दी गईं और अगली पीएमई तक फिट होने की शर्त रखी गई।

  3. सतनाम (आयु: 35 वर्ष) - अस्थायी अनफिट घोषित किया गया, दृष्टि में कमजोरी पाई गई और उसे चश्मा पहनने की सलाह दी गई। सतनाम ने सलाह मान ली।

  4. जॉर्ज (आयु: 40 वर्ष) - अनफिट घोषित किया गया, हृदय की नस में संभावित छोटी रुकावट पाई गई। जॉर्ज के लिए परिणाम: गेट पास तुरंत ब्लॉक कर दिया गया, हृदय विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी गई। जॉर्ज ने विशेषज्ञ से खुद को जांचा, और विशेषज्ञ ने बताया कि कोई गंभीर समस्या नहीं है, कुछ सामान्य दवाइयों और आहार नियंत्रण से वह बिना किसी चिंता के अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर सकता है। लेकिन जार्ज को तब अचंभा होता है जब विशेषज्ञ की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए ,बाल्को अस्पताल का जारी फिटनेस प्रमाण पत्र लाने हेतु निर्देश दिया जाता है , और जॉर्ज को बाल्को अस्पताल की औपचारिकताओं के बीच फंसा दिया जाता है।


जॉर्ज को अब तक तीन महीने की वेतन की हानि हो चुकी है, और उसके रिकॉर्ड को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। उसे अब अनुशासनात्मक कार्रवाई का डर है, क्योंकि उसे साल में 240 दिनों के काम को पूरा करने में असफल रहने की सजा भुगतनी पड़ेगी। इस बीच, राम, रहीम, और सतनाम अपनी दिनचर्या में व्यस्त हैं और जॉर्ज से दूरी बना ली है। क्योंकि जार्ज के साथ सहानभूति और उसके विषय में चर्चा से, प्रबंधन की अनुशासनात्मक कार्यवाही का दंश झेलना पड़ सकता है |


अब यहाँ पर एक और चिंताजनक तथ्य सामने आता है। अभी तक ऐसा कोई मामला नहीं देखा गया है जहाँ बाल्को के किसी अधिकारी या नियमित कर्मचारी को अस्थायी रूप से अनफिट या अनफिट घोषित किए जाने के बाद गेट पास ब्लॉक या बिना वेतन के ड्यूटी से रोका गया हो। यह कठोरता केवल ठेका श्रमिकों पर ही लागू होती है।


इस स्थिति को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि ठेका श्रमिकों के खिलाफ एक प्रकार की साजिश रची गई है, जो सरकारी आदेश की आड़ में की जा रही है।

फिलहाल, जॉर्ज, 15 वर्षों की सेवा देने के बाद, अब स्वास्थ्य और आजीविका के बीच संघर्ष कर रहा है। इस उदाहरण से यह स्पष्ट हो गया होगा कि कैसे एक सरकारी आदेश शोषण का कारण बन सकता है।

निष्कर्ष:

यह स्पष्ट है कि सरकारी आदेशों का इस्तेमाल कभी-कभी एक औजार के रूप में किया जाता है, जो न केवल कर्मचारियों की सुरक्षा के नाम पर बल्कि उनके शोषण के लिए भी किया जा सकता है। बाल्को में ठेका श्रमिकों के खिलाफ किए जा रहे इस अन्यायपूर्ण व्यवहार की गहराई में जाने की जरूरत है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार की प्रक्रियाओं के पीछे कोई और षड्यंत्र छुपा हुआ है? हमें इस प्रकार की समस्याओं को उजागर करना और इस पर सख्त कदम उठाना आवश्यक है, ताकि सभी कर्मचारियों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा हो सके।


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