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स्थानीय निवासियों के शोषण का गंदा खेल - वेदांता प्रबंधन का एक और कारनामा

  • Media Samvad Editor
  • Oct 2, 2024
  • 5 min read

शांतिनगर पुनर्वास: बालको/वेदांता प्रबंधन के दोहरे चरित्र की सच्चाई

पुनर्वास का वादा विस्थापित नागरिकों के लिए आशा की किरण लेकर आता है। लेकिन शांतिनगर, कोरबा के लोगों के लिए यह आशा पिछले कई वर्षों में एक अधूरी कहानी बनकर रह गई है। 1200 मेगावाट पावर प्लांट की स्थापना के बाद, बालको (भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड) द्वारा किए गए वादों ने नागरिकों को भारी कठिनाइयों में डाल दिया है। इस लेख में, हम शांतिनगर के नागरिकों के पुनर्वास से जुड़े चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर करते हैं और कंपनी के रवैये को गहराई से देखते हैं।


मुख्य घटनाओं की समयरेखा: शांतिनगर पुनर्वास की लंबी कहानी

तारीख

घटना का विवरण

18-06-1968

बालको ने 1616 एकड़ भूमि के आवंटन के लिए राज्य सरकार से अनुरोध किया।

02-03-2001

बालको का विनिवेश किया गया और इसका प्रबंधन स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (अब वेदांता) को सौंप दिया गया।

13-06-2005

बालको को तहसीलदार कोरबा द्वारा धारा 248 के तहत 1731.17 एकड़ भूमि के कब्जे के लिए पहला नोटिस भेजा गया।

21-06-2005

बालको को अतिरिक्त नोटिस दिए गए, लेकिन कंपनी ने भूमि मुद्दों का समाधान किए बिना संचालन जारी रखा।

2007

बालको ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, भूमि अधिकारों पर कानूनी सुरक्षा के लिए।

06-02-2009

उच्च न्यायालय ने 1136 एकड़ भूमि के लिए बालको के पक्ष में आदेश जारी किया, जिसमें बालको को बढ़ी हुई पट्टा किराए से राहत दी गई, लेकिन वन भूमि के लिए मुआवजा और एनपीवी देने का आदेश दिया।

25-02-2010

एक डिवीजनल बेंच ने इस आदेश की पुष्टि की, लेकिन पुनर्वास से जुड़े मुद्दे अभी भी अनसुलझे रहे।

05-11-2011

जिला पुनर्वास समिति की बैठक में बालको ने दावा किया कि पुनर्वास का मुद्दा सुलझा लिया गया है, लेकिन वास्तविकता में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

25-04-2013

आर. ए. नारायण और अन्य नागरिकों ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें बालको के 1200 मेगावाट प्लांट के कूलिंग टॉवर द्वारा ध्वनि प्रदूषण के कारण पुनर्वास की मांग की गई।

14-05-2013

बालको ने एसडीएम कोरबा को तीन पुनर्वास विकल्प पेश किए: निजी भूमि पर पुनर्वास, भूमि मुआवजा, या सरकारी मुआवजे के साथ स्व-पुनर्वास।

23-05-2013

बालको ने एसडीएम कोरबा को सूचित किया कि 87 परिवारों ने दूसरे विकल्प को चुना, जिसमें राज्य द्वारा आवंटित भूमि पर पुनर्वास और संरचनाओं और रोजगार के लिए मुआवजा शामिल था।

28-11-2013

इन लिखित शपथ-पत्रों  के बाद, आर. ए. नारायण और अन्य द्वारा जनहित याचिका वापस ले ली गई।

07-02-2014

राज्य सरकार ने वार्ड न. 33 ,रिजदा, कोरबा में 4.73 एकड़ भूमि के लिए पट्टा निष्पादित किया, जिससे बालको को 1200 मेगावाट पावर प्लांट का निर्माण करने की अनुमति मिली।

08-05-2023

दिलेंद्र यादव और गोविंद शर्मा (तितिक्षा एनजीओ) की शिकायत पर कलेक्टर कोरबा ने बालको द्वारा प्रदूषण, सीएसआर विफलताओं और अवैध अतिक्रमण और पुनर्वास  की जांच के आदेश दिए।

22-08-2023

जिला जांच दल की रिपोर्ट में गंभीर उल्लंघनों की पुष्टि की गई, जिसमें अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण (दिन में 72.0 dB(A), रात में 70.4 dB(A)) ,कारखाना अधिनियम के ऊनलंघन , सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा और पुनर्वास में विफलता शामिल है।

पर्दे के पीछे की सच्चाई: अधूरे वादे, झूठी उम्मीदें

जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि बालको द्वारा पुनर्वास के वादे समय पर पूरे नहीं किए गए और नागरिक आज भी कठिनाइयों में जी रहे हैं।

  • भूमि विवाद और देरी: बालको ने 1968 में भूमि का अनुरोध किया था, और वर्ष 2005 में शुरू हुए कानूनी विवादों के बाद भी बालको द्वारा बेखौफ शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा किया जा रहा है| जिला जांच कमिटी रिपोर्ट इस तथ्य की पुष्टि करती है |

  • स्वास्थ्य जोखिमों की अनदेखी: कूलिंग टॉवर के अत्यधिक शोर के कारण नागरिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। शोर का स्तर कानूनी सीमाओं से बहुत अधिक है, फिर भी कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए।

  • झूठे समाधान के दावे: 2011 में बालको ने पुनर्वास के समाधान का दावा किया, लेकिन असलियत में कई परिवार अभी भी पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं। एवं इस संबंध में 28-11-2013 के द्वारा जारी माननीय न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना बेखौफ की जा रही है , ज्ञात हो की उक्त प्रकरण में बालको प्रबंधन द्वारा शपथ-पत्र जारी कर शांतिनगर निवासियों के पुनर्वास एवं रोजगार संबंधी निराकरण करने के कथन किए गए थे |

जांच दल की रिपोर्ट में उल्लंघन पाए जाने के बावजूद,, बालको प्रबंधन के द्वारा बेखौफ , बिना किसी विधिक प्रावधानों की परवाह किए , अवैधानिक कृत्य लगातार किए जा रहे हैं । उपरोक्त जांच रिपोर्ट मे स्पष्टतः उल्लेखित है कि, कूलिंग टावर की स्थापना रिहाइशी क्षेत्रों में की गई है एवं उक्त कूलिंग टावर द्वारा ध्वनि प्रदूषणों के मानकों से लगभग दोगुने स्तर पर ध्वनि प्रदूषण के कारण स्थानीय रहवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है | कूलिंग टावर के 150 मीटर परिधि में शांतिनगर , नेहरुनगर और बालको के अपने प्रशिक्षु इंजीनियर भी निवासरत हैं | तदुपरांत भी कूलिंग टावर से 200 मीटर से भी कम दूरी पर बालको को बहुमंजिला रिहाइशी इमारत बनाने की अनुमति देना , स्वयमेव बालको प्रबंधन की कानून से भी ऊंची पहुँच स्थापित करती है |




2014 के पट्टा दस्तावेज़ में एक महत्वपूर्ण शर्त यह थी कि यदि बालको की गतिविधियों से नागरिकों को कष्ट होता है, तो सरकार उसकी भूमि अधिकारों को रद्द कर सकती है। क्या इस शर्त का उल्लंघन नहीं हुआ है?


शांतिनगर के नागरिकों की आवाज़ें

"हमें घर, सुरक्षा और बेहतर जीवन का वादा किया गया था," एक निवासी ने कहा। "इसके बदले हमें केवल शोर, प्रदूषण और टूटे वादे मिले हैं।"

एक अन्य निवासी ने कहा: "हमने उन पर भरोसा किया, लेकिन सालों बाद भी कुछ नहीं बदला। हम अभी भी प्रदूषण के खतरों में जी रहे हैं।"


निष्कर्ष: न्याय की पुकार

इस जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि बालको ने शांतिनगर के नागरिकों के पुनर्वास में अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा है। और सरकार द्वारा इस मुद्दे पर उठाए गए कदम अभी भी अज्ञात हैं। शांति नगर, नेहरू नगर और बालको के ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी (GETs) अभी भी कूलिंग टॉवर के प्रभावित क्षेत्र में रह रहे हैं। सरकार ने भी 200 मीटर से कम दूरी पर बालको प्रबंधन को रिहाइशी बहु-मंजिला इमारतों के निर्माण की अनुमति दी है, जो कि चौंकाने वाला है।

यह देखना अभी बाकी है कि क्या प्रदूषण नियंत्रण तंत्र, समाज विकास और सीएसआर गतिविधियाँ वास्तव में की जा रही हैं या यह सब सिर्फ दिखावा है। तब तक, शांतिनगर के नागरिक न्याय और लंबे समय से प्रतीक्षित पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं और प्रदूषण की मार से ग्रसित हो रहे हैं |


विशेष: हमारी टीम द्वारा अथक मेहनत और प्रयास कर तथ्यों का संचय कर लेख प्रकाशित किये जाते हैं, पाठकों के द्वारा हमारे प्रकाशन का, समाज में संचार ही  हमारी टीम के सत्य उजागर करने के प्रयासों को प्रेरणा देगा| पाठकों से अपेक्षा है कि प्रकाशित लेखों का संचार  करने में हमारी मदद करें|

Disclaimer (लेखक द्वारा प्रकाशित खबर सूत्रों एवं तथ्यों पर आधारित है, एवं कई तथ्यों का किसी अन्य भाषा से अनुवाद किया गया है ,यदि किसी व्यक्ति/समाज/संगठन को उपरोक्त लेख में कोई  शब्द/वाक्य आपत्तिजनक लगे तो वह हमें editor@media-samvad.com पर संपर्क कर विवरण भेज सकता है, भेजे हुए विवरण का प्रेस काउंसिल आफ इंडिया की मागदर्शिका अनुसार एवं  हमारे  सम्पादकीय दल द्वारा विश्लेषण एवं जांच उपरांत जांच रिपोर्ट प्रेषित किया जाएगा और जांच अनुसार  प्रकाशित लेख की पुनः विवेचना कर प्रकाशित किया जा सकेगा |

 
 
 

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